
Multapi Samachar
lord-shri-krisha-janmastmi
भगवान् श्री कृष्ण का जन्मोत्सव पुरे देश में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है ! इस साल की जन्माष्टमी 2 दिन यानी 11 और 12 अगस्त को मनाई जा रही है !शाश्त्रो के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म जन्माष्टमी के दिन रात को 12 हुआ था इसलिए इस दिन लोग शाम से पूजा करना आरम्भ करते है और रात के 12 बजे तक पूजा करते रहते है फिर 12 बजने पर भगवान् को भोग लगा कर सभी को प्रसाद और मिठाईया बांटते है ! लोग इस दिन के इंतज़ार में पहले से ही तैयारिया करना शुरू कर देते है! इस दिन लोग अपनी इच्छा पूर्ति के लिए सारा दिन उपवास रखते है और रात के 12 बजे ही इस उपवास को खोलते है ! मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से जीवन में सुख , समृधि , शान्ति , और सफलता प्राप्त होती है साथ ही ह्ग्वान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है !
भगवान श्री कृष्ण को न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशो में इन्हें पूजा जाता है इसलिए जन्माष्टमी को दुनिया के कई देशो में एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है! ये तो सब जानते ही है कि श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था और उन्होंने अपना जीवन गोकुल, वृंदावन, गिरिराज और द्वारिका में बिताया था लेकिन बहुत कम लोग उन नगरों के बारे में जानते है जिन्हें श्री कृष्ण ने स्वयं बनाया था ! श्रीकृष्ण ने सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में देह त्यागा और वहां उनका समाधि है।दरअसल कृष्ण जी ने अपने मानव जीवन मेंं तीन नगर बसाए थे। मान्यता के मुताबिक भगवान कृष्ण ने अपने मानव जीवन द्वारिका, इंद्रप्रस्थ और बैकुंठ नाम के नगरों को बसाया।
द्वारिका (Dwarka)

यह नगर भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे पर बसी है। द्वारिका का पूर्व में नाम कुशवती था, जो उजाड़ हो चुकी थी। श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर नए नगर का निर्माण करवाया। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने गुजरात के समुद्र के तट पर द्वारिका का निर्माण कराया और वहां एक नए राज्य की स्थापना की। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, गोकुल में पले, पर राज उन्होंने द्वारका में ही किया। यहीं बैठकर उन्होंने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। द्वारका उस जमाने में देश की राजधानी बन गई थीं। बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।
इंद्रप्रस्थ (Indraprastha)

प्राचीन भारत के राज्यों में से एक था इंद्रप्रस्थ। महान भारतीय महाकाव्य महाभारत के अनुसार यह पांडवों की राजधानी थी। यह शहर यमुना नदी के किनारे स्थित था। इंद्रप्रस्थ, जो पूर्व में खांडवप्रस्थ था, को पांडव पुत्रों के लिए बनवाया गया था। यह नगर बड़ा ही विचित्र था। खासकर पांडवों का महल तो इंद्रजाल जैसा बनाया गया था। द्वारिका की तरह ही इस नगर के निर्माण कार्य में मय दानव और भगवान विश्वकर्मा ने अथक प्रयास किए थे जिसके चलते ही यह संभव हो पाया था। आज हम जिसे दिल्ली कहते हैं, वही प्राचीनकाल में इंद्रप्रस्थ था। दिल्ली के पुराने किले के आसपास खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों का एक बड़ा वर्ग का मनना है कि पांडवों की राजधानी इसी स्थल पर रही होगी। यहां खुदाई में ऐसे बर्तनों के अवशेष मिले हैं, जो महाभारत से जुडे़ अन्य स्थानों पर भी मिले हैं। दिल्ली में स्थित सारवल गांव से 1328 ईस्वी का संस्कृत का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख लाल किले के संग्रहालय में मौजूद है। इस अभिलेख में इस गांव के इंद्रप्रस्थ जिले में स्थित होने का उल्लेख है।
बैकुंठ (Baikunth)

हिन्दू धर्म मान्यताओं में बैकुंठ जगतपालक भगवान विष्णु का वास होकर पुण्य, सुख और शांति का लोक है, लेकिन हम बात कर रहे हैं उस बैकुंठ धाम की, जो भगवान श्रीकृष्ण का धाम था। विद्वानों के अनुसार इसके कई नाम थे- साकेत, गोलोक, परमधाम, ब्रह्मपुर आदि। अब सवाल यह उठता है कि ऐसा नगर कहां था? कुछ लोग बद्रीनाथ धाम को बैकुंठ कहते हैं, तो कुछ जगन्नाथ धाम को। कुछ का मानना है कि पुष्कर ही बैकुंठ धाम था। हालांकि कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अरावली की पहाड़ी श्रृंखला पर कहीं बैकुंठ धाम बसाया गया था, जहां इंसान नहीं सिर्फ साधक ही रहते थे। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने अरावली की पहाड़ी पर कहीं छोटा-सा नगर बसाया था। भू-शास्त्र के अनुसार भारत का सबसे प्राचीन पर्वत अरावली का पर्वत है। मान्यता है कि यहीं पर श्रीकृष्ण ने बैकुंठ नगरी बसाई थी।