
मुलतापी समाचार
इंदौर । ऑनलाइन शिक्षा भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। गुरु और शिष्य का मिलन जब तक नहीं होता तब तक विद्या का भाव नहीं आता है। एेसे ही शिक्षक और विद्यार्थी आमने-सामने बैठते है तो शिक्षा का वातावरण निर्मित होता है। कोरोना महामारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा की अल्पकालीन व्यवस्था बनी है।
यह बात आचार्य विद्यासागर महाराज ने शुक्रवार को पत्रकारों से चर्चा में नेमीनगर जैन मंदिर में कही। उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि सभी समाचार पत्र मिलकर प्रयास करे तो देश के 13 प्रांतों में जहां हिंदी बोली जाती है वहां पर शुद्ध हिंदी बोली जाने लगेगी। हिंदी समाचार पत्रों में अंग्रेजी शब्दों का इस्तमाल नहीं होना चाहिए। अगर एेसा होता है तो इन राज्यों में रहने वाली 70 फीसदी लोग हिंदी भाषा को सही रूप में अपना लेंगे। इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे। देश की तरक्की होगी।
संतों ने मठ मंदिर बना लिए लेकिन उन्हें नदी के समान होना चाहिए-
एक अन्य सवाल के जवाब में आचार्यश्री ने कहा कि संतों ने मठ-मंदिर बना लिए है लेकिन उन्हें नदी की तरह होना चाहिए। संतों को संभव हो तो एक स्थान पर नहीं रहना चाहिए। उन्हें बहते पानी के समान होना चाहिए। जैसे नदी बहती रहती है वैसे ही संतों को भी चलते रहना चाहिए। इस दौरान उन्होंने कहा राजनीति और धर्मनीति में अंतर है। राजनीति में लोग इधर से उधर हो जाते है। धर्म नीति में एेसा संभव नहीं है।