हमेशा अनुभव पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी अनुभव भी धोखा दे देता है
Multapi Samachar
यदि हम स्वार्थ की अपनी आदत बना लेते हैं तो हम जीत कर भी हार जाते हैं
जब हम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हैं, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करते है। पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिये। एक के ऊपर 2 बादाम थे, जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था। फिर उन्होंने बच्चे को हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा l बच्चे ने 2 बादाम वाले कटोरे को चुना! बच्चl अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था, और जल्दी -जल्दी बादाम का हलवा खा रहा था। परंतु बच्चे के आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब बच्चे ने देखा कि पिता वाले कटोरे के नीचे 4 बादाम छिपे थे! बहुत पछतावे के साथ, बच्चे ने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को कोसा। पिता ने बच्चे को सिखाया कि, आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं होता* उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाते हैं । अगले दिन, पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे l एक कटोरे के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरे कटोरे के ऊपर कोई बादाम नहीं था। फिर से उन्होंने बच्चे को अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार बच्चे को कल का संदेश याद था, इसलिए बच्चे ने शीर्ष पर बिना किसी बादाम के कटोरे को चुना। परंतु इस बार नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था!
फिर से, पिता ने बच्चे से कहा, “मेरे बच्चे, हमे हमेशा अनुभव पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी, अनुभव भी आपको धोखा दे दे ता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। तीसरे दिन, पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए। पहले 2 दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर 2 बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं था । पिताजी ने उस कटोरे को चुनने कहा जो बच्चे को चाहिए था। लेकिन इस बार, बच्चे ने अपने पिता से कहा, पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे। पिता खुश थे। उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि बच्चे ने अपने कटोरे का हलवा खाया! हलवे के एकदम नीचे 4 बादाम और थे। पिता ने बच्चे की आँखों में प्यार से देखते हुए, कहा मेरे बच्चे, याद रखना जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करते है। और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर तुम्हारे साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।
सारे दिन की भाग-दौड़ के साथ उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम की सारे जहाँ से कुछ खट्टी कुछ मीठी नरम-गरम कच्ची-पक्की बुलवाकर चुनिंदा हाथों से जब मेरा अंग-अंग तैयार किया जाता है और जैसे ही रात्रि के पहले पहर के अंतिम चरणों में समय के प्रहरी आपस में आलिंगन कर एक होते हैं तभी ठीक रात्रि के बारह बजे मेरा जन्म होता है।
वाह रे मेरी किस्मत तो देखो, मेरे बाहर आते ही मेरा मालिक मेरा सम्राट मेरा जन्मदाता गौर से ऊपर से नीचे तक मुझे निहारता है, कि मुझमें कोई कमी तो नहीं, फिर क्या पूछना जैसे ही मै अपने वास्तविक रूप में आता हॅू मेरी सेवा में मेरे ही घरों के सामने एक से एक गाड़ियाँ मेरी प्रतिक्षा में खडी रहती है कोई में लिखा होता है- रोको मत जाने दो और कोई में नान स्टाप कार्ड लगाये मेरा इंतजार करते रहती हैं, जैसे ही मै उस पर सवार होता हूं
गाड़ियाँ बिना रोक-टोक सुनसान सड़कों पर रातों-रात मेरी मंजिल की ओर लेकर मुझे लेकर दौड़ने लगती, कोई मुझे बस में बैठाता, कोई टेन में तो कोई एरोप्लेन में। मेरे पहुँचते ही सुबह-सुबह ब्रह्म मुहुर्त में सूरज की पहली किरणों के साथ लोग मुझे दोनों हाथों में लेकर मेरा स्वागत करते मुझे बहुत आनंद आता है। वैसे मुझे आग-पानी से डर लगता है हवा सहन नहीं होती, फिर भी जब सुबह-सुबह चाहे ठण्डी हो या गर्मी या हो बरसात लोग मुझे साईकल/मोटर साईकल में कोई हाथ पकड़कर मेरे चाहने वाले के घर छोड़कर आते हैं। मुझे अपने आप पर गर्व है कि मैं कितना खुशनसीब हू कि मुझे बिना किसी पास के राष्ट्रपति/ प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री आई.ए.एस. आई.पी.एस. एवं सभी VIP के घरों में आफिसों में डायरेक्ट एन्ट्री मिलती है। मेरे पहुँचते ही इन लोगों के पास किसी से मिलने के लिये समय हो या न हो इतनी व्यस्तता के बाद भी रोज सुबह मेरे लिये अपना अमूल्य समय निकालकर चाय नाश्ते के साथ मुझे भरपूर समय देते हैं तब मेरा सर गर्व से और भी ऊँचा हो जाता है।
मुझे हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई अमीर-गरीब महल हो या अटारी या हो झुग्गी-झोपड़ी किसी के भी घर में जाने में मुझे कोई शर्म नहीं आती क्योंकि मुझे मालूम है मेरी उम्र सिर्फ एक दिन है। फिर अमीर-गरीब छोटा-बड़ा ऊँच-नीच जात-पात में अन्तर करने में अपना समय क्यों गवाऊँ मेरा उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों से मिलूँ इतनी छोटी सी उम्र में मैं जितने अधिक से अधिक लोगों से मिलूँगा उतनी ही तृप्ती मुझे मिलेगी।
जब मैं ट्रेनों में बसों में सफर करता हूँ तो लोग मेरी दोनों बाहें पकड़े कोई मेरी कमर पकड़े कोई मुझे गोदी में बिठाये अपना मनोरंजन करते हैं समय काटते हें और मैं कभी इसके पास कभी उसके पास मुझे तो बहुत मजा आता है।
कोई-कोई तो मुझे देखने के बाद मेरे हाथों में गरम-गरम जलेबी-समोसे रखकर मुझे जायका दिलाते हैं।
मुझे उस समय बेहद शर्म आती है जब घरों में लोग दिन में अपना सारा काम करने के पश्चात् दोपहर में पलंग पर लेटकर अपने कोमल-कोमल हाथों से कोई मेरी बांहें पकड़े कोई कमर पकड़े मुझे निहारती हैं और थोड़ी देर बाद निहारते-निहारते मुझे अपने ऊपर लिटाये और खुद सो जाती है मुझे घबराहट और बेचैनी होती है, मैं सोचता हूं- हे भगवान कोई कब जल्दी आये और मुझे इनसे छुड़ा के ले जायें।
मेरा हृदय जब गद्-गद् हो जाता है, देश की सीमा पर तैनात भारत माँ के सपूत मुझे देखते हैं दौड़ पड़ते हैं उनके हाथों के स्पर्श से मैं धन्य हो जाता हूं और सोचता हूं कि मेरा जीवन धन्य हो गया।
मजे की बात तो यह है मि मेरे मालिक मेरे ’’सम्राट’’ के हाथ में जो (कलम) तलवार है वो लकड़ी की है जिससे बिना खून-खराबे के सिर्फ चारों तरफ घुमाने से ही लोगों के रूके हु काम होने लगते हैं तभी तो मैं नेता-अभिनेता की शान और गरीबों का मसीहा माना जाता हूँ।
मुझे उन दरिंदों पर बेहद ख़ौफ आता है जो मेरे नाम पर अपनी (कलम) तलवार को बेच देते हैं अपना वज़ूद गिरवी रख देते हैं मेरी भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं अपना उल्लू सीधा करते हैं ऐसे मालिक से तो मन करता है इनकी गुलामी से बंद हो जाना या बलिदान हो जाना बेहतर होगा।
लोग मेरी उम्र बढ़ाने की बहुत कोशिश करते हैं कोई सोचता है 7 दिन तो कोई सोचता 15 दिन हो जाये, लेकिन मुझे मालूम है मेरी उम्र सिर्फ एक ही दिन की है। कल फिर मेरा ही मालिक किसी दूसरे को जन्म देगा उसकी भी यही आत्मकथा होगी। मैं लम्बी उम्र के बजाय एक दिन की शान की जिन्दगी जीना ज्यादा बेहतर मानता हूंं।
मेरे मालिक मेरी रोज की रंगीन/ब्लेक एण्ड व्हाईट तस्वीरें इतिहास के झरोखों में दिखाने के लिये संजो कर रखते हैं। मैंने अपनी आत्मकथा सुना डाली लेकिन अपना नाम नहीं बताया मैं आपकी बाहों में समाया हूं आप मुझे सम्हालिये फिर मैं आपको अपना नाम बताता हूँ। मुझे याद है सबसे पहले मैं बनारस में आज के नाम से निकला फिर अब तो क्या पूछना कोई मुझे मुलतापी समाचार, भास्कर, नवभारत, कोई लोकमत कोई नई दुनिया से पुकारता है।अंग्रेजी में मेरा नाम है- क्रानिकल टाईम्स आफ इण्डिया उर्दू में हितवाद और पंजाब में पंजाब केसरी उजाला सहारा। हर प्रान्त में वहां का लाड़ला माना जाता हूँ। अब यह आपकी मर्जी कि आप मुझे क्या नाम क्या ईनाम देते हैं।
आपको मालूम है मेरी उम्र सिर्फ एक दिन है मुझे आपके हाथों में देखते हुये मुझे बड़ा फक्र महसूस हो रहा है, लेकिन मुझे जब ज्यादा तृप्ती मिलेगी, मेरी आस्था और बढ़ेगी जब आप मुस्कुराकर मुझे सुरक्षित किसी और के हाथों में दे दें।
यह कैसा मजदूर दिवस है, मजदूर दिवस के अवसर पर कविता – अशोक श्री जी द्वारा लिखित कविता जिसमें मजदूरोंं के मन की बात कही गयी है आज पुरा देश कोरोना वैश्यविक महामारी की मार झेल रहा है जिससे पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है जिसके कारण आज मजदूर सबसे ज्यादा परेशान रहो रहा है दोहरी मार झेल रहा है, न तो अपना दुख बाट सकता है और न ही बता सकता है उसी एक उदारहण कविता द्वारा आज की हाल के अनुसार मजदूर दिवस न कह कर मजबूद िदिवस संबोधित कर रहा मजदूर कविता के माध्य से प्रसतुत
अमेरिका में जबरदस्त हड़ताल से हुई मई दिवस की शुरुआत, मानी गई 08 घंटे की शिफ्ट की बात
पूरी दुनिया कोरोना वायरस के साये मई दिवस मना रही है. मई दिवस का मतलब मजदूरों का अंतरराष्ट्रीय दिवस, हालांकि इसकी शुरुआत अमेरिका में जबरदस्त हड़ताल से हुई थी. जिसमें मालिकों को 08 घंटे की शिफ्ट की बात माननी पड़ी थी
कोरोना महामारी के साये में आज (1 मई) पूरे विश्व में मजदूर दिवस (Labour Day 2020) मनाया जा रहा है. हालांकि ये बात जानना बहुत रोचक है कि मई दिवस की शुरुआत कैसे और कहां हुई. वैसे हम आपको बता दें कि मई दिवस ने दुनिया के सबसे ताकतवर देश को हिलाकर रख दिया था.
मजदूर दिवस नहीं विद्रोह और शहादत का दिवस है 01 मई. ये वो दिन है जब दुनिया की सबसे ताकतवर देश के मजदूरों ने अपने मालिकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. वे सड़कों पर उतर आए. हड़ताल पर बैठ गए.
यह मामला अमेरिका का था. वहां की कंपनियों में काम करने वाले वकर्स ने काम के घंटे आठ करने की लंबी मांग के बाद काम बंद कर दिया. हड़ताल शुरू हुए अभी चार दिन भी नहीं हुए थे कि अमेरिका के शिकागो के मार्केट में एक धमाका हुआ. मजदूरों की हड़ताल के बीच इस जबरदस्त धमाके ने प्रशासन का धैर्य तोड़ दिया.
इसके बाद 4 मई को पुलिस ने प्रदर्शनकारी मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं. बताया जाता है कि इसमें दर्जनभर से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई. इसके चलते पूरे अमेरिका में दहशत का माहौल फैल गया.
हालांकि कुछ ही दिनों में सबकुछ सामान्य हो गया. मजदूरोंं की हड़ताल का फायदा ये हुआ कि उनकी आठ घंटे की शिफ्ट की मांग मान ली गई, तभी से आठ घंटे की शिफ्ट की शुरुआत हुई. कई कंपनियों ने मजदूरों की मांगे मान ली. इसके बाद पेरिस में साल 1889 में फिर से फिर मजदूर इकट्ठा हुए. इसे अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन का नाम दिया गया. इसमें पहली बार 1886 के मई महीने में जान गवाने वाले मजदूरों को याद करते हुए 1 मई को मजदूर दिवस मनाने का फैसला किया गया.
इसी के बाद से 1 मई को मजदूरों ने खुद-ब-खुद छुट्टी मनानी शुरू कर दी. इसके बाद धीरे-धीरे दुनिया के सभी प्रमुख देशों को 1 मई को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना पड़ा. हालांकि असल में वो कौन शख्स था जिसने 1 मई को मजदूर दिवस मनाने की पेशकश की थी, इसका आज तक पता नहीं चल पाया है क्योंकि माना जाता है कि एक सर्वसम्मति से लिया गया एक फैसला था. इसके बाद खुद-ब-खुद पूरी दुनिया के मजदूर इससे जुड़ते गए.
भारत में मजदूर दिवस (Labour Day In India) की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 को हुई. तब भारतीय मजदूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार इस वैश्विक दिवस की भारत में शुरुआत करने पर अड़े थे. चेट्यार के नेतृत्व में मद्रास हाईकोर्ट सामने बड़ा प्रदर्शन किया गया. इस दौरान दत्तात्रेय नारायण सामंत उर्फ डॉक्टर साहेब और जॉर्ज फर्नांडिस ने भी इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी. तभी ये दिन भारत में भी एक राष्ट्रीय अवकाश का दिन बन सका.
मनमाेेेेहन पंवार (प्रधान संपादक) मुलतापी समाचार
श्रमिकों की चिंता करते हुए उनके हितों के लिये PM @NarendraModi जी की सरकार ने हमेशा उपयोगी कदम उठाये हैं।
मजदूरों को वित्तीय सहायता और 3 महीनों तक मासिक वेतन का 24% भुगतान का निर्णय भी कोरोना महामारी से उपजी कठिनाईयों में श्रमिकों को एक बड़ा सहारा प्रदान करेगा। https://t.co/Sfnf4rNzvb
प्रधानमंत्री राहत कोष पीएम केयर्स के खाते में 11000 राशि दान स्वरूप भेजी
बेटी है तो कल है, बेटी है तो जीवन है
रंग भरती जीवन में बेटियांं
बेटी बचाओ अभियान 2020-21
बेटी वंदना ….
मुलतापी समाचार
बेटी है तो कल है
बेटी वंदना नमो-नमो बेटी सुख करनी,
नमो-नमो बेटी दुख हरनी
बेटी जीवन ज्योती तुम्हारी,
बेटी है परिवार दुलारी
तीनो लोक तुम्हारे गुण गावे,
मात-पिता शीश नवाये
लीला अदभुद बेटी तुम्हारी,
दोनो कुल की लाज निभाती
मां की ममता तुम से आती,
तुम ही तो संसार चलाती
रूप मात को अधिक सुहावे
दरश करत पिता मन भाये
बेटी तेरे रूप निराले
रानी दुर्गा आजादी के नारे
कल्पना बन आकाश समाती
मदर टेरेसा करूणा की भाँती
प्रतिभा बन राष्ट्र की शॉन कहलाती
शिवराज तुम्हे नित ध्यावे
लाडली लक्ष्मी रूप धराये
जीवन में तुमने रंग भरलाई
यह बात सबकी समझ में आई
जो कोई तुम्हे बुरा बतावे
दुख दारिद्र उसको सतावे
जो कोई तुम्हारा मान करावे
सब सुख भोग उच्च पद पावे
बेटी सचमुच हो तुम कल्याणी
दोनो कुल की लाज निभाती.
नमो नमो बेटी सुख करनी,
नमो नमो बेटी दुख हरनी ……….
बेटियों के हक में जारी………
चिड़िया चोंच भर ले गई नदी न घटियो नीर दान सेना धन घटे कह गए दास कबीर
इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए
बेटी अदिति के जन्म दिवस के अवसर पर अशोक श्रीवास बैतूल व्दारा देश में चल रही कोरोना वायरस की जंग के दौरान देश आर्थिक संकट को देखते हुए प्रधानमंत्री राहत कोष पीएम केयर्स के खाते में 11000 राशि दान स्वरूप भेजी गई
मुलतापी समाचार की ओर से बेटी अदिति को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं और साथ ही पिता अशोक श्रीवास फरििस्ते बेटी के जन्म दिन के अवसर पर आपनेे देश हित मेें कोरोना वायरस से लडनेे हेतु P M राहत कोश में 11000 राशि प्रदान करने पर मुलतापी समाचार आप सभी लोगों को जिन्होंनेे इस वैश्यविक महामारी लोगों की मदद कर रहें उन्हेे फरििस्ते शब्द से संबोधित करता धन्यवाद करता हैैै।
सहृदय धन्यवाद मेरे प्यारे देश के सभी डॉक्टर नर्स पुलिस फोर्स और मोदी जी को……….
पुष्पा नागले कविता का शीर्षक- मेरे इस प्यारे देश में, अभी बहुत कुछ बाकी है!
मेरे इस प्यारे देश में, अभी बहुत कुछ बाकी है, मोदी जी का है यह नारा, स्वच्छ, स्वस्थ हो भारत हमारा हमको मिलकर इस सपने को साकार कराना बाकी है मेरे इस प्यारे देश में अभी बहुत कुछ बाकी है
उस मां की व्याकुलता ना पूछो जो हर बचाव अपनाती है यह न खाना, वहां न जाना हमें वह रोज बतलाती हैं, सुरक्षित रहे उपवन उसका,
कलियों का भविष्य बनाना बाकी है मेरे इस प्यारे देश में अभी बहुत कुछ बाकी है! उन नन्हे बच्चों के खेल खिलौने जिन्हें छूने से वो डरते हैं, बनना है, बहुत बड़ा उन्हें रोज वे ऐसा कहते हैं उनके सपनों को देख उनमें,
अभी पंख लगाना बाकी है मेरे इस प्यारे देश में, अभी बहुत कुछ बाकी है रुक गई है कलमे युवा पीढ़ी की, मन ही मन घबराते हैं, देख चीन, इटली का हाल वे भी डरकर सहम से जाते हैं! है, उनमें कई IAS,IPSअनेकों,
जो देश के रक्षक कहलाते हैं! उनकी कलमो को चलाकर,
अभी देश बनाना बाकी है! मेरे इस प्यारे देश में,
अभी बहुत कुछ बाकी है हाल ना पूछो उन माता-पिता का, जो बार -बार फोन लगाते हैं, है ये बीमारी बहुत भयानक, ये सोच कर डर वे जाते हैं, जो बच्चे हैं घर से बाहर उनका घर आना बाकी है मेरे इस प्यारे देश में,
अभी बहुत कुछ बाकी है है, विनती सब से हाथ जोड़कर कोई ना घूमे मोदी जी का नियम तोड़कर, हम सबको मिलकर सुंदर अपनी,
दुनिया बनाना बाकी है अपने इस प्यारे देश में अभी बहुत कुछ बाकी है……
इंसान की तरह मौत धोखा नहीं देती , लोग स्वयं बेमौत मरते हैं।
लॉकडाउन के समय घर से निकले लोगों की फाइल फोटो
मौत तो निर्धारित होती है, पर नासमझ लोग इसको अनिर्धारित कर देते हैं
एक फ़कीर शाम के वक़्त अपने दरवाज़े पर बैठा था, तभी उसने देखा कि एक छाया वहाँ से गुज़र रही है। फ़कीर ने उसे रोककर पूछा- कौन हो तुम ? छाया ने उत्तर दिया- मैं मौत हूँ और गाँव जा रही हूँ क्योंकि गाँव में महामारी आने वाली है। छाया के इस उत्तर से फ़कीर उदास हो गया और पूछा, कितने लोगों को मरना होगा इस महामारी में। मौत ने कहा बस हज़ार लोग। इतना कहकर मौत गाँव में प्रवेश कर गयी। महीने भर के भीतर उस गाँव में महामारी फैली और लगभग तीस हज़ार लोग मारे गए।
फ़कीर बहुत क्षुब्ध हुआ और क्रोधित भी कि पहले तो केवल इंसान धोखा देते थे, अब मौत भी धोखा देने लगी। फ़कीर मौत के वापस लौटने की राह देखने लगा ताकि वह उससे पूछ सके कि उसने उसे धोखा क्यूँ दिया। कुछ समय बाद मौत वापस जा रही थी तो फ़कीर ने उसे रोक लिया और कहा, अब तो तुम भी धोखा देने लगे हो। तुमने तो बस हज़ार के मरने की बात की थी लेकिन तुमने तीस हज़ार लोगों को मार दिया। इस पर मौत ने जो जवाब दिया वह गौरतलब है। मौत बोली- मैंने तो बस हज़ार ही मारे हैं, बाकी के लोग (उनतीस हज़ार) तो नादानी और नासमझी से मारे गए। महामारी से बचाव जरुरी है,सुरक्षा जरुरी है। मौत के मुंह में खुद जाने वालों से मौत का कोई वास्ता नहीं। वे बेमौत मर कर उन्होंने भगवान की सृष्टि का अपमान ही किया। इसमें मेरा कोई दोष नहीं ,दोषी वे सब स्वयं है ।
दिल्ली की जनाजे की फाइल फ़ोटो
सही है, आज की संकट की इस घड़ी में देश के प्रधानमंत्री की बात न मानकर और घर के बाहर निकल कर,एक जगह एकत्रित होकर हम मौत को ही तो न्यौता दे रहे हैं। मुलतापी समाचार
युद्ध बदला योद्धा बदले बदल गए हथियार ये कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार ना कोई तीर ना कोई गोला ना चलती तलवार ये कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार थरथर धरती कांप रही है दुखिया है संसार यह कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार ना शत्रु दिखता ना शस्त्र ना दिखता है वार ये कैसा है प्रहार भैया ये कैसा है प्रहार ना कोई वैद्य ना कोई दवा और ना ही कोई उपचार यह कैसा है प्रहार भैया यह कैसा है प्रहार कहां पर जन्मा कहां से आया मचा दिया हाहाकार यह कैसा प्रहार भैया यह कैसा प्रहार घर में रहें सुरक्षित रहें न करें दहलीज पार यह कहती सरकार भैया यह कहती सरकार मां आओ या पिता को भेजो जल्दी करो संहार इसका जल्दी करो संहार
मध्यप्रदेश: आजकल सोशल मिडीया पर पुलिस की सख़्ती दिखाते विडीयो किसी के लिए मनोरंजन का साधन हैं तो किसी के लिए क्रूरता की हद। …सबका अपना-अपना गणित व व्याकरण है , सबकी अलग अलग सोच। परंतु कितने लोग सोच रहे हैं कि हम किन हालातों से गुज़र रहे हैं? हमारा कलेजा मुँह को आ जाता है जब हमारे बच्चे पुछते हैं कि पापा घर कब आओगे? आपको बीमारी नहीं होगी ना?आँखें भर आती हैं जब पत्नी रुँधे गले से फ़ोन पर बोलती है-अपना ध्यान रखना और यह कहते ही बिना जवाब सुने फ़ोन काट देती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि हमें पता लगे कि वो रो रही है।
मैं मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से आपको बता देना चाहता हूँ कि पूरे भारत की पुलिस, सुरक्षा को ठेंगा दिखाने वालों पर सख़्ती सिर्फ़ इसलिए कर रही है कि उनका अपना परिवार सुरक्षित रह सके। ये समाज सजीव रह सके। संसार के मानचित्र पर हमारे महान देश का अस्तित्व बना रहे।
याद कीजिए हड़प्पा एवं मेसोपोटामिया सभ्यता को। दोनों सभ्यताएं अपने समय में चरम पर एवं पूर्णत: उन्नत अवस्था में थी। परंतु आज ?? …… हड़प्पा/मोहनजोदड़ो या सिन्धु घाटी सभ्यता को अकाल या कोरोना जैसी ही कोई महामारी खा गई थी। जिसके अवशेष मात्र कहीं-कहीं खुदाई में मिलते हैं तो मेसोपोटामिया को सिकंदर की हठधर्मिता का निवाला बनना पड़ा । और नतीजन; उस सभ्यता का वजूद ही न रहा।
अब आप सोचिए कि आपको अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को मिट्टी में मिलाकर अवशेष मात्र बनाना है या कोरोना महामारी से बचाकर अपनी भावी पिढ़ियों को फलते-फूलते देखना है? आपको हठधर्मी बनकर रसना के स्वादपूर्ति व व्यापार विस्तार हेतु गलियों-सड़कों पर घुमकर अपना, परिवार का व सम्पूर्ण राष्ट्र का नामों-निशाँ कोरोना के माध्यम से नेस्तनाबूद करना है या अपने महान राष्ट्र को विश्वगुरु बनाना है? फैंसला आपको करना है। याद रखिए- हम उस महान हिंद के निवासी हैं जो इतिहास बनाते हैं न कि इतिहास बनते हैं। संक्रमण की उस परिधि में जहाँ ज़रा-सी चुक निश्चिततः मौत है।
हमारे चिकित्सा जगत, बैल्ट के साथी व अन्य कई विभागों के साथी दिन रात एक करके आप लोगों की सुरक्षा में लगे हैं। हमारे जीवन की कोई गारंटी नहीं है पर हम आपको गारंटी दिलाते हैं कि आप सब अपने घरों में रहिए और माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार व प्रशासन द्वारा दी गई हिदायतों का पालन कीजिए। आपके जीवन की सुरक्षा हम करेंगे। एक बात और कहना चाहूँगा देशवासियों कि-
ज़िंदगी है तो इम्तिहान भी होंगे साहब, वरना मुर्दों के तो सिर्फ़ श्राद्ध होते है
आंसू बहाती गई इतिहास रचिता गया इस लंबे सफ़र में 2651 दिन घुट घुट के आंसू बहाती गई इतिहास रचता गया मैंने ठान रखा था
मैं टूटूगींं तो इन चारों हत्यारों को लेकर टूटूगींं निर्भया की सिसकती आहें मुझे सोने नहीं देती थी
मेरी तो अंतिम इच्छा ही यह थी मैं तो इन चारों हत्यारों को लेकर ही टूटूगींं आगे पढि़ए
आंसू बहाती गई इतिहास रचा गया
मैं अपने पुराने दिनों को याद करती हैं, तो आश्चर्य होता है कि जब में बिना पिये दो-चार कदम भी नहीं चल पाती थी. अब तो मैं समय के साथ-साथ इतनी बदल गई है, जैसे रेगिस्तान में ऊँट एक-एक माह का पानी एक साथ पीकर लगातार चलता जाता है।
वैसे में अपनी व्यथा क्या सनाऊँ मैं तो वो मनचली हूँ, जिसने मुझे थामा बस उसकी ही उंगलियों थामें उसके भविष्य को संवारने में लग जाती हूँ। मेरे लिये न तो कोई उम्र की सीमा है. ना जाति का बंधना मुझे न तो कोई अमीर से लगाव है और न गरीब से परहेज, मैं तो स्वच्छन्द विचारों वालों के हाथों की कठपुतली हूँ, जो उसकी खुशी, गम, जज़बात, भावना और विचारों के अनुसार नाचती, आँसू बहाती जाती हूँ और इतिहास रचती जाती हूँ।
अक्सर मुझे लोग अपने दिल से लगाकर रखते हैं, हर कोई अपने दिल-दिमाग को संतुलित कर मुझे अपने हाथों में थामे अपनी कहानी, व्यथा सुनाता जाता है और मैं उसकी उंगलियाँ थामे आँसू बहाती चलती जाती हूँ। मैं तो वह दिवानी हूँ, जिसकी पनाह में जाती हूँ, उसका ही अस्तित्व बनकर रह जाती हूँ। ऋषि-मुनियों के हाथों लगी तो वेद और शास्त्र बन गये। न्याय के पुजारी ने छुआ तो न्याय का इतिहास रचती चली गई। कमजोर गरीब असहाय की तो अर्जी बन न्याय का दरवाजा खट-खटाती चली आ रही हूँ। किसी कलाकार की इच्छा अनुसार उसकी कलाकृति, किसी शायर की मनचाही शायरी और किसी कवि की भावनात्मक कविता, कल्पना और साहित्यकार की रचना रचकर लोगों का दिल जीत रही हूँ। मजे की बात तो यह है कि मैं तो राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री, नेता, राजनेता, आई.ए.एस., आई.पी.एस. की वो ताकत हूँ, जिस रास्ते चली गई, गानों पत्थर की लकीर, तब तो लोग मुझे पूजते हैं, सम्मान देते हैं। नन्हें-मुन्ने बच्चे बड़े ही लगाव से अपनी नाजुक, नन्हीं-नन्हीं कोमल उंगलियों में थामे मुझे चलाने का प्रयास करते हैं और मैं उनका भविष्य संवारने में पूरा-पूरा सहयोग देती हूँ। गाँवों में कुछ महिला, बड़े-बूढ़े जब कभी पहली-पहली बार शर्माते हुए अपने हाथों में मुझे लेते हैं, तो उनके हाथ कांपने लगते हैं. तब मुझे बड़ा ही अजीब अहसास होता है। मुझे थामने वालों को, सभी को अपना सम्राट मानती हूँ और उसके इशारों पे नाचती हूँ, पर जब मैं लोगों को मेरे इशारे पर नाचता देखती हूँ तो मुझे बेहद खुशी के साथ-साथ पूर्ण तृप्ति मिलती है और मुझे अपनी अहमियत का पता चलता है। मेरी तो सदा उनके प्रति आस्था (श्रद्धा) रहती है, जो मुझे सही राह पर चलाते हैं।
मुझे अपने आप पर फक्र है, मैं टूटती भी हूँ तो पहले किसी हत्यारे के नाम मौत का पैगाम (Hanging till Death ) “हैगिंग टिल डैथ” लिख मेरे न्यायप्रिय सम्राट के हाथों मेरा रार-कलग कर दिया जाता है। वॉह रे मेरी किस्मत, मैं कोई और नहीं आपके हाथों की ही एक कलम हूँ।